आखिर क्या बात होती है इन लोगों में कि यहाँ के लोग किसी भी बात को यूं ही नहीं मान लेते. ये किस हद तक जा सकते हैं इसकी एक मिसाल देखिये. आज का बलिया (राजा बलि का क्षेत्र) कभी महर्षि भृगु का आश्रम था.उन्होंने देवताओं के राजा विष्णु की छाती पर लात मारी, जो आज भी अंकित है. कहते हैं कि चाँद पर जो दाग है वो उसी महर्षि के लातों की याद दिलाते हैं. हाउ अमज़िंग!! महर्षि देवराहा बाबा ने फिर उसी तरह श्रीमती इंदिरा गाँधी के सर पर पैर रखकर उनको आशीर्वाद दिया, बुद्धि का शुद्धीकरण किया.सत्य हरिश्चंद्र(बनारस)ने अपने सत्य के सिद्धांतों के लिए सब कुछ त्याग दिया.उनके पुत्र रोहिताश्व ने (रोहतास गढ़) का किला बनाया जो अब बिहार का रोहतास डिस्ट्रिक्ट है.साहित्य के सूर्य कान्त त्रिपाठी'निराला' हों या पंडित मदन मोहन मालवीय (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ),एक बगावती तेवर जरूर रहा है उनके व्यक्तित्व में…..लाल लंगोटा,हाथ में सोटा, पान के खोंछा, कमर अंगोछा, भैया चकाचक,इहे बनारस ह.....(क्रमशः)
Wednesday, April 14, 2010
भोजपुरिया माटी के इतिहास के पन्ने (भाग -३)
न केवल इतिहास ऑफ़ भोजपुरिहा भरा पड़ा है संघर्ष करने वालों से बल्कि,साहित्य में भी उनकी बगावत दिखती है, उनकी अलग छवि दिखती है। संत तुलसीदास ने संस्कृत छोड़कर अवधी में लिखा, उनका बहुत विरोध हुआ।संत रविदास(बनारस) में रहे तो उनका भी विरोध हुआ पर उन्होंने हार नहीं मानी। जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने माँ सीता को राजमहल से निकाल जंगल में भेज दिया तो उनको,यानी जगत माता को महर्षि बाल्मीकि (चम्पारण्य,चंपारण बिहार) ने अपने आश्रम में रखा, वो जगह अब सीतामढ़ी भी कही जाती है। संत गुरु गोरखनाथ ने तो अंग्रेजो के समय अलख निरंजन का ऐसा नारा दिया कि सारे देश के संत यही भाषा बोलने लगे। उन्होंने दाल रोटी,चावल सब्जी की जगह खिचड़ी का ही आविष्कार कर दिया… का मजेदार चीज़ है..खिचड़ी के चार यार,चोखा,चटनी,घी ,आचार...
(क्रमशः)
(क्रमशः)
Tuesday, April 6, 2010
भोजपुरिया माटी के इतिहास के पन्ने-2
भोजपुरिहा हमेशा ज़माने से उलटे बहे हैं.उनकी सोच थी..
हमारी तैराकी ही उलटी है, धारा में तो मुर्दे बहते हैं...
अब जरा आर्य भट्ट (पाटलिपुत्र) को देखिये. समूची दुनिया जब केवल पेट के लिए जी रही थी तब वो गणित के सूत्र खोज रहे थे।
पाणिनि और पतंजलि (पाटलिपुत्र, आज का पटना) जैसे लोग समय की लकीरों से हटकर चलते रहे और अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाई... ज्ञान के क्षेत्र में।
महात्मा बुद्ध(लुम्बिनी, गोरखपुर के पास, सारनाथ, बोध गया) ने तब के समाज से उलटे चलकर सभी जातियों को साथ लिया और वैदिक धर्म से अलग बौद्ध धर्म चलाया।
महावीर जैन (मगध,पावापुरी,नालंदा) भी उसी बागी संप्रदाय के रहे हैं।
आदि शंकराचार्य को मंडन मिश्र(भागलपुर, अंग देश) ने शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया।
भागलपुर यानि अंग देश यानि महाभारत कल के कर्ण का देश जो तब के द्रोणाचार्य और अर्जुन के विरुद्ध लड़ता रहा,
बनारस के कबीर को भुला देना ठीक नहीं होगा.उनके जैसा बागी संत तो न हुआ न होगा।
सभ के एक किनारे से गरियावत रहलन...भैया....
हमारी तैराकी ही उलटी है, धारा में तो मुर्दे बहते हैं...
अब जरा आर्य भट्ट (पाटलिपुत्र) को देखिये. समूची दुनिया जब केवल पेट के लिए जी रही थी तब वो गणित के सूत्र खोज रहे थे।
पाणिनि और पतंजलि (पाटलिपुत्र, आज का पटना) जैसे लोग समय की लकीरों से हटकर चलते रहे और अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाई... ज्ञान के क्षेत्र में।
महात्मा बुद्ध(लुम्बिनी, गोरखपुर के पास, सारनाथ, बोध गया) ने तब के समाज से उलटे चलकर सभी जातियों को साथ लिया और वैदिक धर्म से अलग बौद्ध धर्म चलाया।
महावीर जैन (मगध,पावापुरी,नालंदा) भी उसी बागी संप्रदाय के रहे हैं।
आदि शंकराचार्य को मंडन मिश्र(भागलपुर, अंग देश) ने शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया।
भागलपुर यानि अंग देश यानि महाभारत कल के कर्ण का देश जो तब के द्रोणाचार्य और अर्जुन के विरुद्ध लड़ता रहा,
बनारस के कबीर को भुला देना ठीक नहीं होगा.उनके जैसा बागी संत तो न हुआ न होगा।
सभ के एक किनारे से गरियावत रहलन...भैया....
Sunday, April 4, 2010
भोजपुरिया माटी के इतिहास के पन्ने-1
भोजपुरिहा लोग हमेशा से बागी रहे हैं।
रावण के समय सासाराम में सहस्त्रबाहु था जिसने कभी रावण की अधीनता स्वीकार नहीं की।उलटे रावण को अपनी काँख में छः महीने तक दबाये रखा।
कृष्ण काल में इस क्षेत्र में मगध नरेश जरासंध था जिसने कंस और बाद में कृष्ण को भी मथुरा से भगा के द्वारका में शरण लेने को मजबूर कर दिया।
जमानियाँ (आज का गाजीपुर, अतीत का गाधिपुर, महर्षि विश्वामित्र के पिता गाधि का प्रदेश) के जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम ने सत्रह बार तत्कालीन निरंकुश राजाओ को हराया।
महर्षि विश्वामित्र (बक्सर, प्राचीन नाम बाघसर या व्याघ्रसर) ने नयी दुनिया, नया स्वर्ग ही रच दिया मगर अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने दी।
उन्होंने असुरों की सत्ता को चुनौती देने के लिए राम और लक्ष्मण को पढ़ाया लिखाया और सुरों का साम्राज्य इस क्षेत्र में स्थापित किया।
बनारस तो साक्षात् शिव की नगरी रही है यानि दबे, कुचले, दलित, अनार्यो के भगवान् की।
जब सिकंदर ने विश्वविजय की तैयारी की तो पुरु से उसे कठिन चुनौती मिली थी और उसकी सेना लगातार युद्ध करके थक चुकी थी।
जब उसकी भेंट पाटलिपुत्र के राजा घनानंद के राजपुत्र चन्द्रगुप्त ( जो राजा की मालिन मोरी और राजा घनानंद का पुत्र था) से हुई तो उसका रहा सहा आत्मविश्वास भी हिल गया और उसने चन्द्रगुप्त को अपना पाहुन (जीजा) बनाकर (बहिन दे के, हेलेना से वियाह कर के) अपने देश सकुशल लौटना उचित समझा।
(क्रमशः)
रावण के समय सासाराम में सहस्त्रबाहु था जिसने कभी रावण की अधीनता स्वीकार नहीं की।उलटे रावण को अपनी काँख में छः महीने तक दबाये रखा।
कृष्ण काल में इस क्षेत्र में मगध नरेश जरासंध था जिसने कंस और बाद में कृष्ण को भी मथुरा से भगा के द्वारका में शरण लेने को मजबूर कर दिया।
जमानियाँ (आज का गाजीपुर, अतीत का गाधिपुर, महर्षि विश्वामित्र के पिता गाधि का प्रदेश) के जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम ने सत्रह बार तत्कालीन निरंकुश राजाओ को हराया।
महर्षि विश्वामित्र (बक्सर, प्राचीन नाम बाघसर या व्याघ्रसर) ने नयी दुनिया, नया स्वर्ग ही रच दिया मगर अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने दी।
उन्होंने असुरों की सत्ता को चुनौती देने के लिए राम और लक्ष्मण को पढ़ाया लिखाया और सुरों का साम्राज्य इस क्षेत्र में स्थापित किया।
बनारस तो साक्षात् शिव की नगरी रही है यानि दबे, कुचले, दलित, अनार्यो के भगवान् की।
जब सिकंदर ने विश्वविजय की तैयारी की तो पुरु से उसे कठिन चुनौती मिली थी और उसकी सेना लगातार युद्ध करके थक चुकी थी।
जब उसकी भेंट पाटलिपुत्र के राजा घनानंद के राजपुत्र चन्द्रगुप्त ( जो राजा की मालिन मोरी और राजा घनानंद का पुत्र था) से हुई तो उसका रहा सहा आत्मविश्वास भी हिल गया और उसने चन्द्रगुप्त को अपना पाहुन (जीजा) बनाकर (बहिन दे के, हेलेना से वियाह कर के) अपने देश सकुशल लौटना उचित समझा।
(क्रमशः)