Sunday, April 4, 2010

भोजपुरिया माटी के इतिहास के पन्ने-1

भोजपुरिहा लोग हमेशा से बागी रहे हैं।

रावण के समय सासाराम में सहस्त्रबाहु था जिसने कभी रावण की अधीनता स्वीकार नहीं की।उलटे रावण को अपनी काँख में छः महीने तक दबाये रखा।

कृष्ण काल में इस क्षेत्र में मगध नरेश जरासंध था जिसने कंस और बाद में कृष्ण को भी मथुरा से भगा के द्वारका में शरण लेने को मजबूर कर दिया।

जमानियाँ (आज का गाजीपुर, अतीत का गाधिपुर, महर्षि विश्वामित्र के पिता गाधि का प्रदेश) के जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम ने सत्रह बार तत्कालीन निरंकुश राजाओ को हराया।

महर्षि विश्वामित्र (बक्सर, प्राचीन नाम बाघसर या व्याघ्रसर) ने नयी दुनिया, नया स्वर्ग ही रच दिया मगर अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने दी।

उन्होंने असुरों की सत्ता को चुनौती देने के लिए राम और लक्ष्मण को पढ़ाया लिखाया और सुरों का साम्राज्य इस क्षेत्र में स्थापित किया।

बनारस तो साक्षात् शिव की नगरी रही है यानि दबे, कुचले, दलित, अनार्यो के भगवान् की।

जब सिकंदर ने विश्वविजय की तैयारी की तो पुरु से उसे कठिन चुनौती मिली थी और उसकी सेना लगातार युद्ध करके थक चुकी थी।

जब उसकी भेंट पाटलिपुत्र के राजा घनानंद के राजपुत्र चन्द्रगुप्त ( जो राजा की मालिन मोरी और राजा घनानंद का पुत्र था) से हुई तो उसका रहा सहा आत्मविश्वास भी हिल गया और उसने चन्द्रगुप्त को अपना पाहुन (जीजा) बनाकर (बहिन दे के, हेलेना से वियाह कर के) अपने देश सकुशल लौटना उचित समझा।
(क्रमशः)

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