Tuesday, April 6, 2010

भोजपुरिया माटी के इतिहास के पन्ने-2

भोजपुरिहा हमेशा ज़माने से उलटे बहे हैं.उनकी सोच थी..

हमारी तैराकी ही उलटी है, धारा में तो मुर्दे बहते हैं...

अब जरा आर्य भट्ट (पाटलिपुत्र) को देखिये. समूची दुनिया जब केवल पेट के लिए जी रही थी तब वो गणित के सूत्र खोज रहे थे।

पाणिनि और पतंजलि (पाटलिपुत्र, आज का पटना) जैसे लोग समय की लकीरों से हटकर चलते रहे और अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाई... ज्ञान के क्षेत्र में।

महात्मा बुद्ध(लुम्बिनी, गोरखपुर के पास, सारनाथ, बोध गया) ने तब के समाज से उलटे चलकर सभी जातियों को साथ लिया और वैदिक धर्म से अलग बौद्ध धर्म चलाया।

महावीर जैन (मगध,पावापुरी,नालंदा) भी उसी बागी संप्रदाय के रहे हैं।

आदि शंकराचार्य को मंडन मिश्र(भागलपुर, अंग देश) ने शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया।

भागलपुर यानि अंग देश यानि महाभारत कल के कर्ण का देश जो तब के द्रोणाचार्य और अर्जुन के विरुद्ध लड़ता रहा,

बनारस के कबीर को भुला देना ठीक नहीं होगा.उनके जैसा बागी संत तो न हुआ न होगा।

सभ के एक किनारे से गरियावत रहलन...भैया....

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